अग्निदाह में बचीं महिलाओं के लिए राष्ट्रीय सम्मेलन में ब्रिटिश उच्चायुक्त का भाषण
सर डोमिनिक एस्क्विथ ने नई दिल्ली में अग्निदाह में बचीं स्त्रियों की समग्र सहायता के लिए आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन किया।

सभी गणमान्य व्यक्तियों का स्वागत और धन्यवाद - आप सभी इसके लिए योग्य हैं चाहे आप वक्ता हो या दर्शक।
पीसीवीसी की यह पहल - केवल महत्वाकांक्षी नहीं है, बल्कि अपनी तरह की पहली शुरूआत भी है।
मुझे इस बात की खुशी है कि पूरे भारत में ब्रिटिश उच्चायोग द्वारा इसका समर्थन किया जा रहा है।
चूंकि पीसीवीसी चेन्नई में स्थित है और उन्होंने अपने समग्र सहायता के मॉडल को वहीं पर विकसित किया है इसलिए चैन्नई के हमारे सहयोगी राष्ट्रीय प्रभाव हासिल करने के लिए उनके साथ मिलकर काम कर रहे हैं।
लेकिन पिछले कुछ महीनों में हैदराबाद, मुंबई और दिल्ली के हमारे कार्यालयों ने चार लक्षित राज्यों में कार्यशाला और सम्मेलनों में सहयोग किया है जिससे चिकित्सक जानकारी साझा कर सकते हैं और नीतियों को विकसित कर सकते हैं।
आज साथ मिलकर सीखने और बातचीत करने का अवसर है।
आपने इस पहल और इसके उद्देश्य व लक्ष्यों के बारे में पहले ही सुना है। मैं अपने कुछ मिनट का उपयोग उन संभावित परिणामों के बारे में बताने के लिए करुंगा, जो हमारे अनुसार दाह-हिंसा से पीड़ित महिलाओं के जीवन को बदलने में मददगार साबित हो सकता है।
हमारे सहयोग से आज ही पेश की गई पुस्तिका में बेहतरीन मार्गदर्शन प्रदान किया गया है। भविष्य में इससे बर्न केयर के प्रति चिकित्सकों और नीति निर्माताओं की जानकारी और संवेदनशीलता में वृद्धि होगी। यह केवली पीसीवीसी के कुछ वर्षों के अनुभव पर केंद्रित नहीं है बल्कि इसमें पिछले कुछ महीनों में पूरे भारत से एकत्र किए गए लोगों के विचारों को भी शामिल किया गया है। यह उन लोगों की सहायता करने के लिए एक नया उपकरण है, जो यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि दाह-हिंसा से पीड़ित महिलाओं की समग्र सहायता की जाए। हम आशा करते हैं कि भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय, समाज कल्याण मंत्रालय, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और अन्य केंद्रीय व राज्य सरकार की एजेंसियां द्वारा आगे की छपाई, प्रसार और स्थानीय भाषा में अनुवाद करने में मदद की जाएगी। हमें उम्मीद है कि वह अपनी वेबसाइट पर हैंडबुक के डिजिटल संस्करण को पेश करेंगे, जिससे न केवल कि दाह-हिंसा से पीड़ित महिलाओं की बल्कि देखभाल करने वाले परिवारों और पेशेवरों को भी मदद मिलेगी।
हमारे सहयोग से आज शुरू की गई नेशनल बर्न सपोर्ट लाइन द्वारा मदद की पेशकश की जाती है जो अपने तरह का पहला यूनिफाइड कम्युनिकेशन प्लेटफॉर्म है। दाह हिंसा में मदद के लिए कॉल करने वाले लोगों की सहायता के लिए साइन-पोस्टिंग और मार्गदर्शन देने वाले प्रशिक्षित कर्मचारी मौजूद होंगे। यह जलने की घटनाओं की रिकॉर्डिंग व रिपोर्टिंग के माध्यम से मौजूदा जानकारियों को बढ़ाएगा - और उससे भी अहम यह है कि यह प्राथमिक व अन्य सहायक सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए मनोवैज्ञानिक-सामाजिक सहायता प्रदान करेगा। हमें उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में इस टेली-सपोर्ट सर्विस को मजबूत करने और इसका विस्तार करने के लिए पूरे भारत के सार्वजनिक और निजी क्षेत्रीय संस्थान पीसीवी के साथ मिलकर काम करेंगे।
मैं इस बात से उत्साहित हूं कि मुंबई के केएएम, दिल्ली के एम्स, दिल्ली के आरएमएल हॉस्पिटल और तेलंगाना के गांधी मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल ने अपने परिसर में सर्वाइवर नेटवर्क शुरू करने और आर्ट थेरेपी जैसी सहायक गतिविधियां की शुरूआत करने में दिलचस्पी दिखाई है। इससे आसपास के अस्पतालों से यहां रेफर किए जाने वाले बर्न सर्वाइवर्स के लिए यह जगह मनोवैज्ञानिक-सामाजिक सहयोग में उत्कृष्टता केंद्र के तौर पर विकसित होगी।
यह देखकर बेहद खुशी हो रही है कि निजी क्षेत्र के कुछ हिस्सों द्वारा पहले ही सार्वजनिक स्वास्थ्य की पूर्ति करने में अहम भूमिका निभाई जा रही है। कुछ महीने पहले, हमारे चेन्नई के उप उच्चायुक्त ने केरल में बेबी मेमोरियल अस्पताल के नए बर्न्स आईसीयू का उद्घाटन किया था। इस प्रकार की विशेष सुविधाओं से सर्वाइवर्स को काफी सहायता मिलती है - और उनका दर्द कम होता है, त्वरित जांच होती है और संक्रमण की संभावना कम होती है, और सर्जरी की आवश्यकता कम होती है, रिकवरी में तेजी आती है और दाह-हिंसा से पीड़ित महिलाओं के लिए देखभाल का बेहतर वातावरण सुनिश्चित होता है।
इस परियोजना के दौरान जुड़े कोयम्बटूर के एक अन्य निजी अस्पताल गंगा हॉस्पिटल की तरफ से अब पीसीवीसी द्वारा रेफर की गई महिलाओं के लिए फ्री सर्जरी की पेशकश की जा रही है। हमें उम्मीद है कि भारत के अन्य निजी हेल्थकेयर प्रदाता इन प्रेरक उदाहरणों से प्रेरित होंगे।
केईएम अस्पताल, मुंबई के कर्मा और स्नेहा जैसे मौजूदा अच्छे मनोवैज्ञानिक-सामाजिक बर्न केयर इनिशिएटिव ने उनके मॉडल को विशेषतौर पर सामाजिक और आर्थिक मदद के लिए और समग्र बनाने में पीसीवीसी के इनपुट का स्वागत किया है। डॉक्टर विदाउट बॉर्डर्स जैसे घरेलू हिंसा के पीड़ितों की सहायता करने वाले मौजूदा मनोवैज्ञानिक-सामाजिक पहल ने अपने मॉडल के साथ बर्न-केयर सपोर्ट को जोड़ने के विचार का स्वागत किया है। अब, हम यहां क्यों है इसके बारे में एक संक्षिप्त लेकिन गंभीर रिमाइन्डर।
अगस्त 2016 में, आपने 23-वर्षीय एक महिला के बारे में मीडिया रिपोर्ट पढ़ी होगी जिसे शादी का प्रस्ताव नकारने पर नॉर्थ वेस्ट दिल्ली में तीन लोगों द्वारा जला दिया गया था। लड़की के परिवार पर हमले के बाद, एक आदमी ने उस पर केरोसीन डालकर आग लगा दी थी।
यह पूरे भारत में होने वाली घटनाओं में से एक है। भारत के ब्रिटिश उच्चायोग की लैंगिक समानता के लिए काम करने वाले लोगों के साथ मिलकर महिलाओं के खिलाफ किसी भी प्रकार की हिंसा को रोकने और उसे रोकने में मदद करने की लंबी और विस्तृत परंपरा रही है।
इस परियोजना के साथ हमारे अनुभवों से पता चला है कि दायरे या जटिलता चाहे जितने भी मुश्किल हों लेकिन उसमें भी प्रगति संभव है। इससे हमारी उम्मीद जगती है।
हमें इस बात की खुशी है कि पीसीवी की इस अनूठी पहल में की गई भागीदारी से हिंसा के सबसे उपेक्षित क्षेत्रों में से एक में बदलाव आ रहा है।
प्रभावित महिलाएं केवल पीड़ित नहीं रहेंगी - बल्कि, उन्हें सर्वाइवर्स से कामयाबी की ओर ले जाना चाहिए।
आप सभी को एक बार फिर से धन्यवाद।